दुर्गा सप्तशती पाठ का फल दुर्गा सप्तशती व् चंडीपाठ का पाठ करना सदैव ही शुभ फलदायी रहता है, विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में नियमित रुप से दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती पाठ का फल दुर्गा सप्तशती व् चंडीपाठ का पाठ करना सदैव ही शुभ फलदायी रहता है, विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में नियमित रुप से दुर्गा सप्तशती
श्रीसूक्तम् व लक्ष्मीसूक्तम् पाठ: यह देवी लक्ष्मी जी को समर्पित संस्कृत में लिखा मंत्र है जिसे हम श्री सूक्त पाठ या लक्ष्मी सूक्त भी कहते है | यह सूक्त ऋग्वेद
अपार धन प्राप्ति और धन संचय के लिए कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से चमत्कारिक रूप से लाभ प्राप्त होता है। कनकधारा स्तोत्र का पाठ सभी प्रकार के सुख सौभाग्य
इस पाठ का फल अतिशीघ्र फलदायी होता हैं रोग,क्लेश,ग्रह पीड़ा,बाधा,शत्रु,दुख आदि निवारण में यह सहायक हैं धन,धान्य,ऐश्वर्य,सुख,यश,कीर्ति,सम्मान,पद प्रतिष्ठा,आरोग्य,पुष्टि प्राप्ति हेतु करे इसका पाठ करें। श्रीगणेशाय नमः विनियोग अस्य श्री इन्द्राक्षीस्तोत्रमहामन्त्रस्य,शचीपुरन्दर
भैरव्युवाच काली पूजा श्रुता नाथ भावाश्च विविधाः प्रभो । इदानीं श्रोतु मिच्छामि कवचं पूर्व सूचितम् ॥ त्वमेव शरणं नाथ त्राहि माम् दुःख संकटात् । सर्व दुःख प्रशमनं सर्व पाप प्रणाशनम्
।। भवान्यष्टकम् ।। न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रों न पुत्री न भृत्यो न भर्ता। न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।। अर्थात: हे
ब्रह्मास्त्र प्रवक्ष्यामि बगलां नारदसेविताम् । देवगन्धर्वयक्षादि सेवितपादपंकजाम् ।। त्रैलोक्य-स्तम्भिनी विद्या सर्व-शत्रु-वशंकरी आकर्षणकरी उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकरी मारणकरी जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व-वश्यं कुरु कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा । ॐ
विनियोगः ॐ अस्य श्रीब्रह्मास्त्र-महा-विद्या-श्रीबगला-मुखी स्तोत्रस्य श्रीनारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री बगला-मुखी देवता, ‘ह्ल्रीं’ बीजं, ‘स्वाहा’ शक्तिः, ‘बगला-मुखि’ कीलकं, मम सन्निहिता-नामसन्निहितानां विरोधिनां दुष्टानां वाङ्मुख-गतीनां स्तम्भनार्थं श्रीमहा-माया-बगला मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थं पाठे विनियोगः ।
विनियोग अस्यश्री अर्गला स्तोत्र मंत्रस्य विष्णुः ऋषि: अनुष्टुप्छन्द: श्री महालक्षीर्देवता मंत्रोदिता देव्योबीजं नवार्णो मंत्र शक्तिः श्री सप्तशती मंत्रस्तत्वं श्री जगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशती पठां गत्वेन जपे विनियोग:।। ध्यान ॐ बन्धूक कुसुमाभासां पञ्चमुण्डाधिवासिनीं।